चेटीचंड पर्व : भगवान झूलेलाल का जन्मोत्सव एक सिंधी त्योहार
चेटी चंड पर्व सिंधी समाज के आराध्य देव भगवान झूलेलाल के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व से सिंधी समाज के नववर्ष की शुरुआत भी होती है। यह पर्व हर साल चैत्र शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर मनाया जाता है।
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4/10/20241 min read


चेटीचंड पर्व : भगवान झूलेलाल का जन्मोत्सव
चेटीचंड पर्व भारतीय धार्मिक परंपरा में महत्वपूर्ण एक पर्व है, जो मुख्य रूप से राजस्थान के जोधपुर शहर में मनाया जाता है। यह पर्व भगवान झूलेलाल का जन्मोत्सव मनाने के लिए आयोजित किया जाता है। इस पर्व के दौरान भक्तजन भगवान झूलेलाल की कथा सुनते हैं और उनके जन्मदिन की खुशी मनाते हैं।
भगवान झूलेलाल की कहानी
भगवान झूलेलाल जी का जन्म चैत्र शुक्ल 2 संवत 1007 को हुआ था, इनके जन्म के सम्बन्ध में कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं. मगर इन सभी में बहुत सी समानताएं भी हैं यहाँ आपकों भगवान झूलेलाल जी की सर्वमान्य कथा बता रहे हैं जिन पर अधि कतर लोगों का विश्वास हैं.
बात सिंध इलाके की हैं 11 वीं सदी में वहां मिरक शाह नाम का शासक हुआ करता था. वह प्रजा का शासक कम अपनी मनमानी करने वाला जनता को तरह तरह की शारीरिक यातनाएं देने में आनन्द खोजने वाला अप्रिय एवं अत्याचारी था. उसके लिए मानवीय मूल्य तथा व्यक्ति जीवन गरिमा व धर्म कुछ भी मायने नहीं रखते थे.
दिन ब दिन बढ़ते शाह के जुल्मों से सिंध की प्रजा तंग आ चुकी थी. राजतन्त्र में वे चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते. उनके पास पुकार का एक ही जरिया था वह था ईश्वर से मदद की गुहार. राज्य की जनता सिन्धु के तट पर एकत्रित होकर भगवान से इस मुश्किल से निकालने के लिए प्रार्थना करने लगे.
वरुणदेव उदेरोलाल ने जलपति के रूप में मछली पर सवार होकर लोगों को दर्शन दिया. तथा आकाशवाणी हुई कि हे भक्तों तुम्हारे दुखों का हरण करने के लिए मैं ठाकुर रतनराय के घर माँ देवकी के घर जन्म लूँगा तथा आपके जुल्मों को खत्म करूँगा.
चैत्र शुक्ल 2 संवत 1007 के दिन नसरपुर में माँ देवकी पिता रतनराय के घर चमत्कारी बालक ने जन्म लिया जिसका नाम उदयचंद रखा गया. जब शासक मीरक शाह को यह खबर मिली तो उसने अपने सेनापति को इस बालक का वध करने के लिए भेजा.
सेनापति अपनी पूरी सेना के साथ नसरपुर के रतनराय जी के यहाँ पहुचकर बालक उदयचंद तक पहुचने का प्रयास किया तो झूलेलाल जी ने अपनी दैवीय शक्ति से शाह के राजमहल में आग लगा दी तथा उसकी फौज को पंगु बना दिया.
जब शाह की किसी ईश्वरीय शक्ति के ताकत का अंदाजा हुआ तो वह माँ देवकी के घर गया तथा झूलेलाल जी के कदमों में गिरकर अपने पापों की क्षमा मांगने लगा. इस तरह अल्पायु में ही झूले लाल जी ने आमजन में सुरक्षा का भरोसा दिलाया तथा उन्हें निडर होकर अपना कर्म करने के लिए प्रेरित किया.
सिंध का शासक मीरक शाह जिन्होंने झूलेलाल जी को मारने के लिए आक्रमण किया, उसका अहंकार चूर चूर हो गया तथा वह उनका परम शिष्य बनकर उनके विचारों को जन जन तक पहुचाने के कार्य में जुट गया.
शाह ने अपने आराध्य के लिए कुरु क्षेत्र में एक भव्य मंदिर का निर्माण भी करवाया. सर्वधर्म समभाव तथा अमन का पैगाम देने वाले झूलेलाल जी एक दिव्य पुरुष थे.
चेटीचंड पर्व मनाने की विधि
चेटीचंड पर्व को जोधपुर शहर में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व की तैयारियों में लोग बहुत उत्साहित होते हैं और अपने घरों को सजाते हैं।
पर्व के दिन भक्तजन भगवान झूलेलाल की मूर्ति को फूलों और चादर से सजाते हैं। उन्हें फल, मिठाई और प्रसाद के रूप में भी चढ़ावा चढ़ाते हैं। भक्तजन भगवान के आगे भजन-कीर्तन करते हैं और उनकी महिमा गाते हैं।
चेटीचंड पर्व के दौरान झूलेलाल के भक्तों को भगवान का आशीर्वाद मिलता है और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस पर्व के दौरान जोधपुर शहर में भक्तों की भीड़ जुटती है और उन्हें झूलेलाल के दरबार में आनंदित करती है।
चेटीचंड पर्व एक धार्मिक उत्सव है, जो भगवान झूलेलाल के जन्मदिन को मनाने के लिए आयोजित किया जाता है। इस पर्व के दौरान भक्तजन भगवान की कथा सुनते हैं और उनके जन्मदिन की खुशी मनाते हैं। पर्व को मनाने की विधि में भक्तजन भगवान की मूर्ति को सजाते हैं और उन्हें भजन-कीर्तन करते हैं।